भारतीय हिमालय में ३६०० मीटर पर एक मंदिर है जिसका नाम रुद्रनाथ है और यह मंदिर हिन्दुओं में बहुत फेमस है. ऐसा माना जाता है कि यहाँ दर्शन करने पर इंसान पापमुक्त हो जाता है साथ ही उसे शरीर त्यागने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह मान्यताएं पुराणी है, तब कि हैं जब सतयुग था. सतयुग में कोई पाप, द्वेष और घृणा नहीं थी. लेकिन आज के समय में यह नीति लागू होती नहीं दिखाई देती मुझे क्योंकि आज लोग हर दिन पाप कर रहे हैं.
सदियों पहले, ७८८ ईस्वी में जब आदि गुरु शंकराचार्य पैदा हुए तब तो समाज स्वर्ग जैसा था. कोई समस्या ही नहीं थी ना लोगों में और ना लोगों के खान-पान में. ज़िन्दगी इतनी मस्त थी जितनी अब हम सपने में सोचते हैं. उस समय यदि गलती से किसी इंसान ने कुछ ऐसा सोच लिया जो नहीं सोचना चाहिए था तो अपने पाप के प्रायश्चित करने के लिए रुद्रनाथ जैसे मंदिरों की पैदल यात्रा होती थी.
उस समय कोई सुविधा नहीं थी, पहिये की खोज हो चुकी थी लेकिन भारतीय हिमालय में पहिया बहुत लेट आया इस कारण लोगों को अपने घर से ही हजारों किमी लम्बी यात्राओं को अंजाम देना होता था. लोग एक छोटे से बैग को लेकर निकल जाते थे और रास्ते में आने वाले गाँव उनका स्वागत करते और यात्रियों को भोजन और रहने के लिए स्थान उपलब्ध करवाते.
शहरों को पार करके यात्री जब गोपेश्वर पहुँचता जहाँ से कठिन रास्ता शुरू होता, यहाँ से आगे कोई गाँव नहीं, कोई इंसान नहीं, कोई पगडंडी नहीं. पहाड़ पर सिर्फ जंगल है और उसमें रहने वाले जंगली जानवर. अगर नसीब में लिखा होगा तो आदमखोर जानवर यात्री को खा जायेंगे और यदि नहीं तो यात्री हिमालय के कठिन रास्तों पर चलते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचेगा जिसे रुद्रनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है.
बर्फ से लड़ते हुए जब यात्री मंदिर प्रागण में प्रवेश करता है तो उसकी आँखों से झर-झर आंसू बहने लगते हैं क्योंकि इस लम्बी पैदल यात्रा ने उसके भीतर के अहंकार को तोड़ दिया है. यात्री अपने आपको तुच्छ प्राणी समझ रहा है और भगवान् रूद्र के आगे बैठकर अपने पापों को बताता है और निर्णय भगवान् पर छोड़ देता है. यात्री तैयार है किसी भी जजमेंट के लिए. यदि अभी उसे मौत भी मिल जाये तो वो सहर्ष स्वीकार कर लेगा.
कुछ दिन हिमालय में तपस्या करके यात्री वापस अपने घर आ जाता है, अब वह अपने ऊपर काम करना शुरू करता है. वो वापस आकर ध्यान लगाता है, सामाजिक कार्य करता है और अपनी सोच को और साफ़ करता है. फिर एक दिन वो मुस्कुराते हुए अपने शरीर को त्याग देता है. अंतिम समय पर उसे भगवान् रूद्र दिखाई देते हैं, रूद्र उससे कहते हैं तुम पापमुक्त हो चुके हो...अब तुम्हारा निवास स्थान मेरी शरण है. और इस तरह हमारा जीवन पहाड़ों में स्थित मंदिरों और पहाड़ों से जुड़ा हुआ है.
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